16 फ़रवरी 2011

रुकिए जनाब ! यह भाषण आपका नहीं है ...

पिछले दिनों भारत के विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने संयुक्त राष्ट संघ में अपने भाषण के दौरान गलती से पुर्तगाल का भाषण पढऩा शुरू कर दिया। वे पूरे तीन मिनट तक भाषण पढ़ते रहे फिर भी उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं लगा कि वे भारत की बात नहीं बल्कि पुर्तगाल की बात कर रहे हैं। संयुक्त राष्टï्र संघ में भारत के राजदूत द्वारा याद दिलाने के बाद उन्हें चेतना आई कि वे भारत का नहीं बल्कि किसी और देश का भाषण पढ़ रहे हैं। किसी अंतरराष्टï्रीय मंच पर भारतीय विदेश मंत्री की यह घोर लापरवाही थी।

इस घटना से अंतरराष्टï्रीय मंच पर भारत पूरी तरह शर्मसार हुआ है। वैसे इस घटना को केवल एक गलती मात्र के रूप में देखना सही नहीं होगा। इससे यह सवाल उठना लाजिमी है कि अंतरराष्टï्रीय मंचों पर भारत को किरकिरी कराने वाले विदेश मंत्री आखिर महत्वपूर्ण मुद्दों पर भारत का पक्ष मजबूती के साथ कैसे रख सकेंगे? जिन्हें खुद यह पता नहीं रहता है कि वह जो भाषण देने जा रहे हैं वह भारत के संदर्भ में है या नहीं। कायदे की बात तो यह होनी चाहिए कि वे जिसे विषय पर बोलने जा रहे हैं उसकी तैयारी उन्हें पहले से खुद करनी चाहिए। इससे वे प्रभावशाली तरीके से अपनी बात रख सकते थे। तैयार भाषण को पढ़ देने, और वो भी गलती से दूसरे देश का भाषण पढ़ देने, से भारत की छवि धुमिल हुई है।

इसमें कोई मत नहीं कि विदेश मंत्री के रूप में एसएम कृष्णा का कार्यकाल बहुत अच्छा नहीं रहा है। कई अंतरराष्टï्रीय घटनाओं के पीछे जाएं तो लगता है कि भारत अपनी बात कह पाने में पूरी तरह नाकाम रहा है। विदेशों में भारतीयों पर हमले लगातार बढ़ रहे हैं, फिर भी भारत हमेशा की तरह मौन बैठा रहा। हाल ही में अमेरिका में भारतीय छात्रों के जूतों में रेडियोएक्टिव एलिमेंट लगाने का नियम तय किया गया है। यहां भी एसएम कृष्णा विरोध स्वरूप केवल मिमयाती बिल्ली की तरह अपनी बात रख सके। जबकि अमेरिका ने इस पूरी तरह अनसुना कर दिया है। देश का नेतृत्व करने वाले इतने डरे सहमे नजर आते हैं तो भला वे भारत को एक मजबूत देश के रूप में वैश्विक समुदाय के सामने कैसेपेश कर सकेंगे। अंतरराष्टï्रीय मंचों पर भारत को जिस मजबूती के साथ अपना पक्ष रखना चाहिए वैसा करने में एस एम कृष्णा न केवल पूरी तरह नाकाम रहे हैं बल्कि उन्होंने कई मौकों पर भारत की हंसी उड़ाई है। ऐसे व्यक्ति को विदेश मंत्रालय जैसा अहम महकमे में रहने का कोई अधिकार नहीं है। बेहतर होता कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह किसी ऊर्जावान और प्रभावशाली व्यक्ति विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी देते।

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