28 अप्रैल 2011

अन्ना पर कीचड़ उछालने से कुछ नहीं मिलेगा

भ्रष्टïाचार का पानी अब नाक के ऊपर से बह रहा है। देशवासियों के लिए इसे झेल पाना अब काफी मुश्किल है। आखिर लोग किस पर विश्वास करे। सभी तो चोर ही नजर आते हैं। नेता, नौकरशाह, उद्योगपति सभी कोई भ्रष्टïाचार के दलदल में फंसा हुआ मालूम पड़ता है। इन तीनों के गठजोड़ ने पूरे देश की व्यवस्था को पूरी तरह तहस-नहस कर दिया है। अब तो कुछ पत्रकारों के भी इस जंगलराज में शामिल होने की खबर ने काफी धक्का पहुंचाया है।

आम आदमी जो पहले से काफी कमजोर और असहाय है और बेबस नजर आ रहा है। इस डूबती नैया के बीच अन्ना हजारे नाम का तिनका सामने आ गया है। अन्ना हजारे ने भ्रष्टïाचार के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की शुरुआत कर लोगों में आशा की एक किरण जगा दी है। लोग इस उम्मीद में है कि यह गांधीवादी शायद देश को भ्रष्टïाचार रूपी दलदल से बाहर निकालने में सक्षम हो। लेकिन अकेला चना भाड नहीं फोड़ सकता। अकेले अन्ना से कुछ नहीं होगा और हम सब देशवासियों का उनका साथ देना होगा।

देखिए न, बेचारे अन्ना बाबा का भी विरोध शुरू हो गया है। फिर हम जैसे थोड़ा बहुत पढ़े-लिखे लोगों में हर चीज का विरोध करने की जन्मजात आदत रही है। आखिर जिस व्यक्ति ने अपना पूरा जीवन समाज के कल्याण और भ्रष्टï लोगों के खिलाफ लड़ाई में बीता दिए उस व्यक्ति का विरोध करने का क्या औचित्य है? लेकिन लड़ाई अभी शुरू ही हुई है कि बुद्घिजीवि हलकों में इसका विरोध भी शुरू हो गया है। अन्ना हजारे और उनके साथियों पर अनर्गल आरोप लगाकर दरअसल वे भ्रष्टïाचार के खिलाफ लड़ाई की धार को कमजोर करना चाहते हैं। साथ ही देश में भ्रष्टïाचार और अव्यवस्था के खिलाफ उपजे जनाक्रोश को भी दूसरी दिशा में मोडऩे का प्रयास हो रहा है।

दरअसल अन्ना पर कीचड़ उछालने से कुछ नहीं मिलेगा। कुछ लोग तो पूर्वनियोजित एजेंडा के तहत अन्ना की मुहिम का विरोध कर रहे हैं जबकि कुछ लोग आदतन अन्ना के विरोध में लिख रहे हैं। क्योंकि किसी भी काम का विरोध करना ही उसका मूल उद्देश्य है। और वे हाथ धोकर उनके पीछे पड़ गए है। हमें भ्रष्टïाचार के खिलाफ इस महासंग्राम में अन्ना का समर्थन करना चाहिए।

06 अप्रैल 2011

क्रिकेट जीता पर भारत हारा !

क्रिकेट विश्व कप जीत कर भारत विश्व विजेता बन गया है। एक भारतीय होने के नाते मुझे भी टीम की इस उपलब्धी पर गर्व है और मैं टीम को इसके लिए बधाई देता हूं। लेकिन विश्व कप शुरू होने से लेकर जीत के बाद तक के पूरे घटनाक्रम को देखते हुए मेरे मन में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। मुझे लगता है कि इस विश्व कप में केवल क्रिकेट जीता है जबकि देश हार गया है।

खेल नहीं अब कारोबार का खेल
इसके पीछे कई तर्क हैं। क्रिकेट अब केवल खेल भी नहीं रह गया है बल्कि यह तो कारोबार का खेल बन कर रह गया
है। भारतीय उप महाद्वीप पर विश्व कप महाकुंभ के आयोजन का सबसे बड़ा फायदा आईसीसी और बीसीसीआई को मिला जबकि भारत के विश्व कप जीतने से क्रिकेट खिलाड़ी, आयोजक, प्रसरक सभी मालामाल हुए हैं। जीत के बाद तो टीम इंडिया की प्रशंसा में हर तरफ कसीदे पढ़े जा रहे हैं और उनपर चारों ओर से धनवर्षा हो रही है। यहां के लोगों की अंध राष्टï्रीयता की आंधी में देश की सरकार, कंपनियां सभी उड़ रही हैं। टीम में शामिल सदस्यों के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकार, उद्योग जगत, कंपनियां आदि सभी में रुपया, गाड़ी, आलिशान बंगला, पदोन्नति, पुरस्कार आदि बांटने की तो होड़ सी लगी हुई है। केंद्र सरकार ने पुरस्कार राशि को पूरी तरह कर मुक्त करने की घोषणा करने के अलावा आईसीसी को भी 45 करोड़ रुपये की कर से मुक्त दिया। विश्व की सबसे अमीर खेल संस्था आईसीसी ने देश में करीब 700 करोड़ की अंधाधूंध कमाई की उसे कर छूट देने का क्या औचित्य है? मैं पूछता हूं कि सरकार की इस दरियादिली से किसका नुकसान हुआ है? जाहिर तौर पर देश का। जिस देश में बाकी खेलों के लिए रत्ती भर की सुविधाएं नहीं है वहां की सरकार क्रिकेट के नाम पर मनमाना धन लूटा रही है। दरअसल यह क्रिकेट मोह नहीं है बल्कि हर कोई देश में क्रिकेट की अंधी लोकप्रियता को भूनाने में लगी है। एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि यह खेल मैदान से हटकर अब कॉर्पोरेट टेबल पर खेला जाने लगा है। यह खेल कारोबार राजनीति और माफिया का अड्डï बन चुका है। टीम इंडिया की जीत पर जश्न मनाइए लकिन जोश में होश मत गंवाइए। नहीं तो देर सबेर इसका खामियाजा भुगतने के लिए भी तैयार रहना होगा।

राष्टï्रीयता के नाम पर केवल क्रिकेट ही क्यों ?
ऐसा लगता है आप क्रिकेट मैच नहीं देखते या टीम इंडिया की तारीफदारी नहीं करते हो आप सच्चे देश भक्त नहीं है।
यहां क्रिकेट ही सच्ची राष्टï्रीयता का सर्टिफिकेट है। तभी तो कुछ लोग जो भारत-पाक मैच के दौरान पाकिस्तान टीम का समर्थन करते देखे जाते हैं उन्हें देश द्रोह करार दिया जाता है। क्रिकेट की आड़ में सब कुछ माफ है। चाहे बाकी खेल जहन्नु में जाए। देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाडिय़ों को पुरस्कार के रूप में कितने रुपये मिले? सरकार ने उनकी सुविधाओं के लिए क्या किया? खिलाड़ी लगातार खेल संघों के अडिय़लय रवैये और सुविधा होने का रोना रोते रहते हैं लेकिन इसे सुनने वाला कोई नहीं है। वल्र्ड कप क्या जीत कर हम विश्व विजेता बनने का दावा कर रहे हैं। लेकिन जरा सोचिए ओलंपिक में हम आज भी एक स्वर्ण पदक तक नहीं जीत पाते हैं। हम अपनी इस कमजोरी को छूपाते हैं और क्रिकेट की जीत पर इताराते हैं। क्रिकेट का मतलब पूरा खेल नहीं बल्कि क्रिकेट का मतलब बाकी खेल और खिलाडिय़ों का सत्यानाश है।