02 मई 2011

100 में 90 बेइमान है, फिर भी मेरा देश महान है

कुछ चीजों को लेकर मैं पश्चिमी देशों का कायल रहा हूं। वहां की हर चीजें काफी व्यवस्थित और सभी कार्य समय पर होते हैं। लोग बात-बात पर बेवजह सड़कों पर धरना-प्रदर्शन कर लोगों को परेशान नहीं करते। वहां किसी व्यक्ति या पद के आधार पर देश के संसाधनों का भोग नहीं करते बल्कि संसाधनों का उपयोग नागरिक सुविधाओं के लिए किया जाता है। और सबसे अच्छी बात यह है कि वहां त्वरित फैसले लिए जाते हैं। लेकिन इन सबसे ऊपर की विशेषता यह है कि वहां के लोग लापरवाह होकर भी काफी जिम्मेदार और सतर्क होते हैं। वे हमारी तरह राष्टï्रभक्त नहीं पर देश के साथ कभी धोखा नहीं करते। पश्चिमी देशों की यही विशेषता है और यही उसे हमसे काफी आगे करता है।

इसके विपरीत हम भारतीय झूठे और फरेबी ज्यादा हैं। हमारी कथनी और करनी में छत्तीस का आंकड़ा रहता है। जो चीजें सोचते वह करते नहीं और जो करते उसकी भनक खुद को भी नहीं लगती। बात बात पर देश भक्ति की कसमें खाते हैं लेकिन मौका मिलते ही बेइमानी की सारी हदें तोड़ सकते हैं। यहां हर जगह आपको अव्यवस्था और अराजकता नजर आएगी। व्यक्तिगत काम से लेकर सभी सार्वजनिक कम समय पर हो जाएं तो यह आश्चर्य की बात है। रेलगाडिय़ां कभी समय पर नहीं चलती, सरकारी कार्यालय में कौन काम कितने समय में होगा इसकी कोई गांरटी नहीं है। यानी हर जगह लेट लतीफि। हर जगह अव्यवस्था। सरकारें ऐसे कार्य करती है मानो वह सरकार नहीं बल्कि किसी दूसरे देश के सरकार की गुलाम हो। साफ शब्दों में कहें तो अमेरिका की। बात भी सही है सभी बड़े फैसले बगैर अमेरिका की सहमति से नहीं लिए जाते।

फिर भी ऐसे देश को हमेशा हम महान साबित करने की चेष्ठïा क्यों करते हैं। जिस देश में कि 100 में से 90 बेइमान हैं। पश्चिमी देशों की अच्छाइयों और अपने देश की बुराई का बखान कर हम यह जताना चाहते हैं कि भारत की तुलना में पश्चिमी देश आगे क्यों है। हमें साफगोई से अपनी कमियों से स्वीकार करना होगा। कोई देश या समाज अगर हमसे आगे है तो क्यों है।

कुछ बुराइयां भी है
बहरहाल ऐसा नहीं कि पश्चिमी देश हर मामले में बेहतर है। वहां का खुला और उन्मुक्त समाज अपने आप में कई तरह की परेशानियों की जड़ है। इसके चलते समाज का ताना बाना नष्टï हो रहा है। लेकिन दुखद पहलू यह है कि हम पश्चिमी देशों से अच्छाइयां नहीं बुराइयां ग्रहण करते जा रहे हैं। विशेषकर उसी तरह का खुला परिवार। हम पश्चिमी रहन-सहन अपनाकर दरअसल खुद को आधुनिक कहलाना चाहते हैं जबकि हमारी सोच आज भी घटिया है।

वास्तव में हम आधुनिक तभी कहलाएंगे जब हमारी सोच उन्नत हो केवल रहन सहन का तरीका नहीं।



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