06 मई 2011

कुछ तो शर्म करे सरकार

पिछले दिनों पीएसी की बैठक के दौरान सत्ता पक्ष के सदस्यों का जो रवैया सामने आया वह बेहद असंवैधानिक और अनैतिक था। इससे भी ज्यादा शर्मसार करने वाली बात यह थी कि पूरे घटनाक्रम के निर्माता-निर्देशक केंद्र सरकार के ही चार वरिष्ठï मंत्री थे जो बैठक के दौरान संसद भवन परिसर में ही मौजूद थे और वे पीएसी में शामिल सत्ता पक्ष के सदस्यों से लगातार मोबाइल पर बात करते हुए उन्हें निर्देश दे रहे थे। यानी लोकतंत्र और संसद की गरीमा को तार तार कर देने वाला यह वाकया सरकार के षड्यंत्र से हुआ। इससे जनता में स्पष्टï संदेश गया है कि भ्रष्टïाचार के दलदल में फंसी सरकार नहीं चाहती कि इसकी निष्पक्ष चांज हो और जांच रिपोर्ट जनता के सामने आए। इसके लिए सरकार और उसमें शामिल लोग हर कदम पर जांच को बाधा पहुंचाने और उस पर बेबुनियाद आरोप लगाने का काम कर रहे हैं। कितना अशोभनीय है कि जिस सरकार की जिम्मेदारी देश के संवैधानिक संस्थानों की गरीमा को बनाए रखने और भ्रष्टïाचार पर अंकुश लगाते हुए लोगों को निष्पक्ष शासन मुहैया कराना है वही सरकार पूरे संवैधानिक ढांचे को पूरी तरह बर्बाद करने में जी जान से लगी है।

पीएसी में शामिल सत्ता पक्ष के सदस्यों ने जिस तरह मुरली मनोहर जोशी को अक्ष्यक्ष पद से बेदखल करते हुए सैफुद्दिन सोज को पीएसी का अध्यक्ष मनोनित कर दिया वह पूरी तरह असंवैधानिक था। दरअसल पीएसी का अध्यक्ष नियुक्त करने का अधिकार केवल लोकसभा अध्यक्ष को है, न कि पीएससी में शामिल सदस्य अपने मन से अध्यक्ष मनोनित कर सकता है। दूसरी अहम बात यह है कि पीएसी के अध्यक्ष को लोकसभा का सदस्य होना जरूरी है जबकि सोज लोकसभा के नहीं बल्कि राज्यसभा के सदस्य हैं। ऐसे में सोज को पीएसी का अध्यक्ष मनोनित करना पूरी तरह असंवैधानिक था। कुछ तो शर्म करे सरकार।

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