यहां सवाल सांप्रदायिक शक्तियों का नहीं है बल्कि सवाल भ्रष्टïाचार का है। आम लोग देश में अराजक व्यवस्था से तंग आ चुके हैं। देश का कोई भी नागरिक चाहे वह किसी भी विचारधारा या समुदाय से संबंध क्यों न रखता हो, उसे व्यवस्था की खामियों के खिलाफ बोलने और आवाज उठाने का पूरा अधिकार है। आरएसएस अगर किसी संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त है तो सरकार उसे दंड दे सकती है या संगठन पर प्रतिबंध लगा सकती है। लेकिन इस आधार पर कि भ्रष्टïाचार के खिलाफ आंदोलन को संघ या भाजपा या अन्य कोई सांप्रदायिक शक्तियों का समर्थन प्राप्त है, ऐसे आंदोलनों को खारिज नहीं कर सकते। केंद्र सरकार ने अब तो गांधी वादी अन्ना हजारे और उनके साथियों को भी संघ और भाजपा का मुखौटा बताना शुरू कर दिया है। वास्तव में केंद्र सरकार एक ही र्फामूले पर काम करने लगी है। वह है कि जो भी व्यक्ति कांग्रेस या उसकी सरकार के खिलाफ बोलेगा, जो भी लोग सरकार की नाकामियों और भ्रष्टïाचार पर अपना मुंह खोलेगा, वह संघ और भाजपा का एजेंट कहलाएगा।
बकौल केंद्र सरकार, इन जन आंदोलनों को संघ हवा दे रहा है। तो फिर इसमें बुराई क्या है? क्या वास्तव में भ्रष्टïाचार के खिलाफ बोलना भी सांप्रदायिक कदम है? मेरी जानकारी में तो ऐसा पहली बार हो रहा है कि आरएसएस को भ्रष्टïाचार और काले धन जैसे गंभीर मुद्दों खिलाफ आंदोलनों को हवा देने का श्रेय दिया जा रहा है। अगर सचमुच ऐसा हो रहा है तो मैं इसे संघ परिवार के भीतर एक बड़े बदलाव के रूप में देख रहा हूं। इस बदलाव का स्वागत किया जाना चाहिए।
संघ परिवार को अब तक देश में सांप्रदायिक सदभाव बिगाडऩे, हिंदुओं को भड़ाकाने, समाज को पारंपरिक कूरीतियों की ओर धकेलने और कट्टïर हिंदू समाज तैयार करने के तौर पर जाना जाता रहा है। कम से कम बहुत दिनों के बाद ही सही संघ ने राष्टï्रहित से जुड़े मुद्द्े राष्टï्रव्यापि स्तर पर हवा दी है जिसका सरोकार सीधे आम आदमी से है। अगर वास्तव में आरएसएस और उसके संबंद्घ संगठनों ने पारंपरिक मुद्दों, जिसमें राम मंदिर से लेकर मुस्लिम समाज के विरुद्घ आग उगलने जैसे कदम शामिल हैं, को पीछे छोड़ दिया है तो इसे बदलाव के रूप में देखा जाना चाहिए। और यही संघ परिवार और राष्टï्र दोनों के हित में भी होगा।
भाजपा, आरएसएस समेत तमाम ऐसे संगठनों को यह बात को समझ लेनी चाहिए कि जनहित के मुद्दे उठाने पर ही जनता उसका समर्थन कर सकती है। सांप्रदायिक और पारंपरिक मुद्दों के चलते ही ये संगठने हासिये पर चले गए हैं। उधर, राजनीतिक पार्टी होने के बाद भी इन्हीं सब मुद्दों के चलते भाजपा का भी जनाधार सिकुड़ रहा है। बदलाव के लिए यह सबसे बेहतरीन समय है और बेहतर होगा कि संघ और भाजपा अपना चोला बदले।
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