08 फ़रवरी 2011

मिस्र से कुछ सबक ले भारत

मिस्र के राष्टï्रपति होस्नी मुबारक के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। उन्हें हर हाल में सत्ता छोड़ अब जाना हीहोगा। लाखों की संख्या में मिस्र की जनता अब भी सड़कों पर है और वे इस बार निर्णायक लड़ाई लडऩे के मूड मेंदिख रहे हैं। जनता के आक्रोश को देखते हुए सेना, पुलिस और यहां तक कि विदेशी ताकतों ने भी मुबारक का साथछोड़ दिया है। इस घटना ने पूरे विश्व को यही संदेश दिया है कि सरकार (चाहे वह तानाशाह हो या लोकतांत्रिकसरकार) आम जनता को बेवकूफ समझने की भूल करे। ज्यादातर एशियाई देशों के साथ यही विडंबना है किसत्ता के मद में चूर वहां की सरकार नागरिक अधिकारों की अवहेलना करने और उन्हें बुनियादी सुविधाओं सेवंचित रखने में कोई कोताही नहीं करती हैं। इन देशों की सरकारें देश की जनता के प्रति कम और अमेरिका औरयूरोपीय देशों की सरकार के प्रति अधिक जवाबदेह दिखती हैं। भारत की स्थिति भी मिस्र se ज्यादा भिन्न नहीं है।अंतर केवल इतना है कि भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत सरकार चुनी जाती है। हर 5 या 10 साल मेंसरकार जरूरत बदल जाती है लेकिन उनकी नीतियां नहीं बदलतीं। केवल सरकार का चेहर बदल जाता है लेकिनरवैया वही है-जनता विरोधी। यही कारण है कि आजादी के 60 साल गुजर जाने के बाद भी आधी आबादी कोबुनियादी सुविधाएं नसीब नहीं है। महंगाई और भ्रष्टïाचार अपने चरम पर हंै। किसान आत्महत्या के लिएमजबूर हैं और सरकार अर्थव्यवस्था की ऊंची वृद्घि दर की दुहाई देकर खुद का पीठ थपथपा रही है। मिस्र में जनकाका अक्रोश भारत के लिए भी एक सबक है।
2 फरवरी 2011

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